Wednesday, November 25, 2009

पुरुष-विमर्श : एक नई शुरुआत


आज शाम के समय अपने मित्रों के साथ बैठे हुए ब्लाग से सम्बन्धित चर्चा चल निकली। चिन्तन और चिन्ता जैसे विषय पर बात होते-होते विमर्श पर आ गई। हमारे एक मित्र डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव, जो दलित-विमर्श के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम बन गये हैं, ने स्त्री-विमर्श को लकर कुछ सवालों को उठाया। (इस समय वे स्त्री-विमर्श से सम्बन्धित पुस्तक का सम्पादन कार्य कर रहे हैं।)

हमारा काम स्त्री-विमर्श पर चल रहा है, इस कारण अपने मित्रों और दूसरे सहयोगियों, शुभचिन्तकों से इस बारे में राय ले लेते हैं। इसी क्रम में कई बार ऐसे मौके आये जब लगा कि स्त्री-विमर्श के साथ-साथ पुरुष-विमर्श की भी आवश्यकता है।

हमारे एक अन्य सहयोगी डा0 राकेशनारायण द्विवेदी ने कहा कि आप इसे पुरुष-विमर्श का नाम न दें, अन्यथा यह लगेगा कि आप स्त्री-विमर्श की प्रतिक्रिया स्वरूप इस विमर्श की चर्चा कर रहे हैं।

हो सकता है कि बहुत से स्त्री-विमर्श के पक्षधर लोगों को इस बात का समर्थन प्राप्त हो जाये पर किसी बिन्दु पर आकर विचार किया जाये तो समाज में पुरुष-विमर्श की भी चर्चा होनी चाहिए।

इससे पूर्व भी कई बार हमने यह प्रयास किये कि इस विषय पर चर्चा हो, आपस में बहस हो किन्तु इस विषय को मजाक में लेकर समाप्त कर दिया गया। आज अपनी मित्र-चर्चा के बाद जब हम उठे तो यह सोचकर ही उठे कि आज से इस विमर्श की शुरुआत की ही जायेगी। हालांकि करीब पाँच साल पहले हमारा इसी विषय पर एक आलेख प्रकाशित भी हुआ था और उसकी प्रतिक्रिया भी सार्थक रूप में सामने आई थी।

दरअसल जब भी पुरुष की बात की जाती है तो एक छवि ऐसी बनती है जो किसी भी दर्द से पीड़ित नहीं है, जिसके पास अमोध शक्तियाँ हैं, वो जो चाहे कर सकता है, समाज में वह सदा शोषक की स्थिति में रहता है, कोई पुरुष का शोषण नहीं कर सकता वगैरह-वगैरह किन्तु यही सर्वथा सत्य नहीं है।

जब भी पुरुष की बात होती है तो क्यों किसी विराट व्यक्तित्व का चित्र दिमाग में बनता है? अपने आसपास दृष्टि डालिए, क्या आपको कोई ऐसा पुरुष नहीं दिखता जो पीड़ित हो? क्या कोई ऐसा पुरुष नही समझ आता जिसका शोषण न हो रहा हो? क्या कोई ऐसा पुरुष आपकी निगाह में नहीं आता जो आपको पराधीन दिखाई देता हो? अवश्य ही दिखता होगा। मजदूर, घरों, कार्यालयों में काम करते नौकर, सड़क के किनारे छोटे-छोटे काम करते व्यक्ति, समाज के अन्य दूसरे छोटे-मोटे काम करते पुरुष भी तो शोषण का शिकार हैं।

आखिर क्यों इस तरह की छावि बनी है कि यदि पुरुष विमर्श की चर्चा होगी तो वह स्त्री-विमर्श के प्रत्युत्तर में ही होगी? यह क्यों सोचा जाता है कि यदि पुरुष-विमर्श की बात की जायेगी तो उसके पीछे पति-पत्नी वाला स्वरूप ही सामने आयेगा? पुरुष भी शोषित है, घर में भी है, बाहर भी है। उसके शोषण की स्थितियाँ अलग हैं। उन पर विचार करने की स्थिति भी अलग रही है।

वर्तमान में समाज के स्वरूप पर दृष्टि डालें तो भली-भांति ज्ञात होगा कि शोषक और शोषित के बीच अब लिंगभेद का जितना प्रभावी है, उसी तरह से प्रस्थिति भी प्रभावी है। आम आदमी आज हाशिए पर खड़ा दिखाई देता है। दलित वर्ग हाशिए पर ही दिखता है। मजदूर, आदिवासी, गरीब, लाचार पुरुष भी इस बात के अधिकारी हैं कि उनके साथ भी मनुष्य की तरह व्यवहार किया जाये। क्या इन लोगों के लिए पुरुष-विमर्श की आवश्यकता नहीं है?

एक बात और है कि समाज के आधुनिक संस्करण में परिवार में पति-पत्नी के मध्य भी विवाद की स्थिति रहती है। इस स्थिति के चलते परिवारों में स्त्री और पुरुष दोनों ही तनाव की स्थिति में रहते हैं। पत्नी भी प्रताड़ित है तो पति भी प्रताड़ित है। स्त्री भी परेशान है तो पुरुष भी परेशान है। समस्या दोनों ओर है। इस विमर्श को पुरुष-विमर्श के नाम से जानने में कौन सी बुराई है?

चलिए, आज से ही सही किन्तु ब्लाग पर पुरुष-विमर्श की शुरुआत की जा रही है। समाज के शोषित, दमित, प्रताड़ित पुरुषों के बारे में, उनकी प्रस्थिति के बारे में जानने-समझने का तथा उनमें चेतना का संचार करने, उनके व्यक्तित्व विकास के लिए भी प्रयास किया जायेगा (इनमें पत्नी पीड़ित पति भी शामिल हैं, परिवारीजनों से पीड़ित पुरुष भी शामिल हैं)

डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव को याद करवा रहे हैं, इस सम्बन्ध में उन्होंने लेख भेजने का वादा किया है।

ब्लाग को यहाँ से देखें। प्रतिक्रिया दें और राय भी भेजें। ऐसा नहीं है कि समाज पुरुषों का शोषण नहीं करता है, उसे आपको और हमें ही सामने लाना है। इस सम्बन्ध में मिलकर प्रयास करना है, सामाजिक चेतना का विकास करना है। आइये प्रयास करें और पुरुष-विमर्श के इस नये आन्दोलन में हमारे सहयोगी बनें।

13 comments:

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

मनोज कुमार said...

स्वागत।

हरिओम दास अरुण said...

ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक अभिनन्दन

uthojago said...

i am agree wholly.Man is also weak so he can be exploited.we r with weak .

kshama said...

Vimarsh shayad stree ya purush ka nahee,balki, insaan ka yaa insaniyat hona chahiye,haina?

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वागत.

ललित शर्मा said...

माफ़ किजिएगा टंकण त्रुटि के कारण मैने टि्प्पणी हटाई है। आपका स्वागत है, हार्दिक अभिनंदन है।

शशांक शुक्ला said...

सही है देखते है कितने आते है

नारदमुनि said...

vichar hee to nahi aate aajkal.narayan narayan

सुलभ § सतरंगी said...

अच्छा लिखा है. स्वागत है आपका.

- Sulabh jaiswal

सुलभ § सतरंगी said...

आप कहते हैं...
"इस सम्बन्ध में मिलकर प्रयास करना है, सामाजिक चेतना का विकास करना है।"
मैं कहना चाहूँगा - "समाज में चेतना या समकालीन समाज में नयी चेतना का विकास करना है "

आप कहते हैं...
"आइये प्रयास करें और पुरुष-विमर्श के इस नये आन्दोलन में हमारे सहयोगी बनें।"
मैं पूछना चाहूँगा - "यह किस प्रकार नया आन्दोलन है, अगर आन्दोलन है तो किसके विरुद्ध है, क्या हमारे मौजूदा समाज के विरुद्ध है, क्या परिवार में मुखिया कहलाने के बावजूद भी एक पुरुष की दयनीय स्थिति को लेकर विमर्श है. क्या यह परिस्थिति/पुरुष की समस्या इतनी विकट है की हमे मिलकर आन्दोलन करने की जरुरत है. वैचारिक/चिंतन/लेखन संवाद किसीभी आन्दोलन का प्रारंभिक स्वरुप हो सकता है.
मेरे विचार में आज नारी/पुरुष विमर्श से ज्यादा बच्चो और बुजुर्गों पर विमर्श की जरुरत है "

- Sulabh jaiswal

खुला सांड said...

सही कार्य है विमर्श तो हर एक के लिए जरुरी है पर पहल आपने पुरुष से शुरू की अच्छी बात है !!!

ड़ा.योगेन्द्र मणि कौशिक said...

पुरुष स्वयं को शोषित कहलाना पसन्द ही नहीं करता जनाब क्योंकि वह पुरुष है ..?????????