आप सभी ने अकसर मालिकों द्वारा अपने नौकरों के साथ मारपीट की घटनाओं के चर्चे तो सुने ही होंगे। पुरुष मालिकों द्वारा महिला नौकरानियों के साथ शारीरिक दुव्र्यवहार तक की घटनाएँ आसानी से सुनाई देतीं हैं। इसके साथ-साथ ऐसी घटनाएँ भी क्या सुनने में आतीं हैं जहाँ महिला मालकिनों ने पुरुष अथवा महिला नौकरों के साथ बदसलूकी की हो?
अवश्य ही आती होगीं किन्तु उन्हें इस कारण से नजरअंदाज कर दिया जाता है कि वे घटनाएँ एक महिला द्वारा होतीं हैं? क्या ऐसा होता है?
महिलाओं के विरुद्ध यदि पुरुष मालिक का अत्याचार होता है तो उस पर सभी को अपने अपने निर्णय सुना देने का, फतवा तक जारी कर देने का अधिकार मिल जाता है किन्तु ऐसा किसी महिला मालकिन द्वारा किये जाने पर सभी शान्त क्यों रह जाते हैं?
हम चूँकि इस ब्लाग की चर्चा अपने दोस्तों के बीच भी लगातार करते रहते हैं। इसके माध्यम से पुरुष को प्रताड़ित करने वाली घटनाओं को सामने लाने का भी विचार है। इसी संदर्भ में हमारे एक मित्र ने भोपाल से अपने पड़ोस की एक घटना का जिक्र हमसे किया था। आज उसी घटना का हवाला हम दे रहे हैं।
महिला मालकिन ने अपने एक 14 वर्षीय नौकर (लड़का) के साथ इस हद तक मारपीट की कि बेचारे को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। आये दिन मालकिन द्वारा उसको प्रताड़ित करने, क्षमता से अधिक काम करवाने की, अकारण परेशान करने की, कम भोजन देने की, उसकी गलतियाँ गिनाकर पगार काट लेने की घटनाएँ सामने आतीं रहतीं थीं।
हमारे मित्र ने मालकिन द्वारा उसके शारीरिक शोषण की भी बात कही जिसे हम प्राथमिकता में नहीं रखते हैं क्योंकि इस बात के कोई प्रमाण हमारे मित्र नहीं दे सके हैं। मारपीट की घटनाओं के गवाह तो मुहल्ले के सारे लोग हैं ही।
ऐसे में क्या इस पर समाज सुधारकों को अथवा महिला चेतना की वकालत करने वालों को उस बदतमीज महिला मालिक के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई जानी चाहिए? यहाँ मामला किसी पुरुष से महिला की प्रताड़ना का नहीं अपितु एक महिला द्वारा पुरुष की प्रताड़ना का है। मात्र इस कारण से शान्त रह जाना निन्दनीय है।
हाँ, मोहल्ले के लोगों ने आवाज उठाई किन्तु उस महिला के रसूखदार लोगों से सम्बन्ध होने के कारण उस घटना को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। वह बालक अब भी उसी मालकिन की सेवा में लगा है, मार खाते हुए, अत्याचार सहते हुए।
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आपको बताते चलें कि उस बच्चे की माँ उस महिला के घर में रसोई आदि का काम करती है और दोनों माँ-बेटे अपने पेट की खातिर उस महिला मालिक की ज्यादतियाँ सहने को मजबूर हैं।
अवश्य ही आती होगीं किन्तु उन्हें इस कारण से नजरअंदाज कर दिया जाता है कि वे घटनाएँ एक महिला द्वारा होतीं हैं? क्या ऐसा होता है?
महिलाओं के विरुद्ध यदि पुरुष मालिक का अत्याचार होता है तो उस पर सभी को अपने अपने निर्णय सुना देने का, फतवा तक जारी कर देने का अधिकार मिल जाता है किन्तु ऐसा किसी महिला मालकिन द्वारा किये जाने पर सभी शान्त क्यों रह जाते हैं?
हम चूँकि इस ब्लाग की चर्चा अपने दोस्तों के बीच भी लगातार करते रहते हैं। इसके माध्यम से पुरुष को प्रताड़ित करने वाली घटनाओं को सामने लाने का भी विचार है। इसी संदर्भ में हमारे एक मित्र ने भोपाल से अपने पड़ोस की एक घटना का जिक्र हमसे किया था। आज उसी घटना का हवाला हम दे रहे हैं।
महिला मालकिन ने अपने एक 14 वर्षीय नौकर (लड़का) के साथ इस हद तक मारपीट की कि बेचारे को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। आये दिन मालकिन द्वारा उसको प्रताड़ित करने, क्षमता से अधिक काम करवाने की, अकारण परेशान करने की, कम भोजन देने की, उसकी गलतियाँ गिनाकर पगार काट लेने की घटनाएँ सामने आतीं रहतीं थीं।
हमारे मित्र ने मालकिन द्वारा उसके शारीरिक शोषण की भी बात कही जिसे हम प्राथमिकता में नहीं रखते हैं क्योंकि इस बात के कोई प्रमाण हमारे मित्र नहीं दे सके हैं। मारपीट की घटनाओं के गवाह तो मुहल्ले के सारे लोग हैं ही।
ऐसे में क्या इस पर समाज सुधारकों को अथवा महिला चेतना की वकालत करने वालों को उस बदतमीज महिला मालिक के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई जानी चाहिए? यहाँ मामला किसी पुरुष से महिला की प्रताड़ना का नहीं अपितु एक महिला द्वारा पुरुष की प्रताड़ना का है। मात्र इस कारण से शान्त रह जाना निन्दनीय है।
हाँ, मोहल्ले के लोगों ने आवाज उठाई किन्तु उस महिला के रसूखदार लोगों से सम्बन्ध होने के कारण उस घटना को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। वह बालक अब भी उसी मालकिन की सेवा में लगा है, मार खाते हुए, अत्याचार सहते हुए।
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आपको बताते चलें कि उस बच्चे की माँ उस महिला के घर में रसोई आदि का काम करती है और दोनों माँ-बेटे अपने पेट की खातिर उस महिला मालिक की ज्यादतियाँ सहने को मजबूर हैं।